महामृत्युंजय सेवा मिशन

हमारा उद्देश्य

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1. महामृत्युंजय मंत्र की जप विधि

महामृत्युंजय मंत्र सभी प्रकार के कष्टों को हरने वाला है। हमे अपना उद्धार स्वयं करना चाहिए। इसी उद्देश्य को लेकर महामृत्युंजय सेवा मिशन कार्य कर रहा है। मन्त्र जप की सरल विधि यहाँ दी जा रही है, जिससे आप स्वयं का, स्वयं से उद्धार कर सकते है ।

सर्व प्रथम आचमन :- ॐ केशवाय नमः ॐ माधवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः (कहकर जल ग्रहण करें) ॐ हृषिकेशाय नमः (कहकर जल पृथ्वी पर छोड़ दें ।)

विनियोग :- अस्य श्री त्र्यम्बक मन्त्रस्य वशिष्ठ ऋषिरपुष्टुप् छन्दस्त्र्यम्बक पार्वतीपतिर्देवता त्र्यं बीजं ॿं शक्ति: कं कीलकं मम ( अपने लिए अन्यथा रोगी का नाम)  सर्वरोगनिवृत्तये (सर्वाभीष्ट सिद्धये) त्र्यम्बकमन्त्र जपे विनियोग। । (पृथ्वी पर जल छोड़ दें)

ऋष्यादिन्यास :- ॐ वशिष्ठ ऋषये नमः शिरसि (सिर को स्पर्श करें), ॐ अनुष्टुप्छन्द से नमः मुखे (मुख को स्पर्श करें), ॐ त्र्यम्बक देवातायै नमः हृदये (हृदय को स्पर्श करें) ॐ त्र्यं बीजाय नमः गुह्ये (गुप्त अंगो को स्पर्श करें) ॐ ॿं शक्तये नमः पादयो (दोनों पैरों को स्पर्श करें). ॐ कं कीलकाय नमः नाभौ (नाभी को स्पर्श करें), ॐ विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे (सभी अगों का स्पर्श करें)।

कर न्यास :- ॐ त्र्यम्बकं-अंगुष्ठाभ्यं नमः (अंगूठे को स्पर्श करें). ॐ यजामहे – तर्जनीभ्यां नमः (अंगूठे के बराबर वाली अंगुली को स्पर्श करें), ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् – मध्याभ्यां नमः (बीच की अंगुली को स्पर्श करें ), ॐ उर्वारुकमिव बन्धनान् – अनामिकाभ्यां नमः, ॐ मृत्योर्मुक्षीय – कनिष्ठकाभ्यां नम: (सबसे छोटी अंगुली को स्पर्श करें), ॐ मामृतात् – करतल करपृष्ठाभ्यां नमः (हथेली को आगे-पीछे से स्पर्श करें)

हृदयादिन्यास :- ॐ त्र्यम्बकं – हृदयाय नमः (हृदय को स्पर्श करें), ॐ यजामहे – शिरसे स्वाहा (सिर को स्पर्श करें), ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् – शिखायै वषट् (शिखा को स्पर्श करें), ॐ उर्वारुकमिव बन्धनान् – कवचाय हुम् (दोनों कन्धों को स्पर्श करें), ॐ मृत्योर्मुक्षीय – नैत्रत्रयाय वौषट् (नेत्रो को स्पर्श करें), ॐ मामृतात् – अस्त्राय फट् (पूरे शरीर को ऊपर से हाथ घुमाकर ताली बजायें)

घ्यानम् :- हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो, द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम् । अङ्कयस्तकरद्वयामृतघटं कैलाशकान्तं शिवं, स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे।।

सर्व प्रथम सर्वकर्म का साक्षीभूत घी का दीपक प्रज्जवलित कर भगवान महामृत्युंजय का ध्यान करके मूल मन्त्र का जप करें, जप पूर्ण होने के पश्चात् हाथ में जल लेकर श्री महामृत्युंजय देवता अर्पणास्तु’ कहकर पृथ्वी पर छोड़ दें शकराये नम: कह कर जल का तिलक करे उसके पश्चात् आरती इत्यादि कर उठ जायें| 

2. ॐ नमः शिवाय मंत्र की जप विधि

वैसे तो सामान्य रूप से भी यदि निरन्तर ॐ नमः शिवाय का जप चलता रहे तो वह भी समस्त पापो का क्षय करने में पूर्ण समर्थ है, परन्तु विशेष इच्छा पूर्ति को लेकर किया गया जप विधिपूर्वक ही करना चाहिए। सर्वप्रथम हाथ में जल, चावल व दक्षिणा लेकर संकल्प पढ़ना चाहिए।

संकल्प :- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु श्रीमद्भगवते महापुरुषस्य शिवाज्ञया प्रवर्त्तमानस्य ब्रह्मोऽदि द्वितीया-परार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भारत देशे अमुक नगर, अमुक क्षेत्रे, वैक्रमादे अमुक विक्रमी सम्वत्सरे अमुक मासे अमुक ऋतु अमुक पक्ष तिथौ वासरे अमुक गोत्रोत्पन्नो सर्वारिष्ट निवारणार्थॆ सर्वपापानि चक्षयार्थ मनोप्सित फल प्राप्तिपूर्वकं श्री साम्बसदाशिवाय प्रीत्यर्थे ॐ नमः शिवाय इह मन्त्रस्य जपअहं करिष्यें।

विनियोग :- ॐ अस्य श्री शिव पञ्चाक्षरी मन्त्रस्य वामदेव ऋषि, पक्ति छन्द, शिवो देवता, ॐ बीज, नमः शक्ति शिवायेति कीलकम् । श्री साम्ब शिवकृपा प्राप्तयर्थ अखिल पुरुषार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोग ।।

ऋषिन्यास :- ॐ वामेदेवर्षये नमः शिरसि (सिर का स्पर्श करे)। ॐ पंक्ति छन्द से नमः मुखे (मुख का स्पर्श करें), शिव देवतायै नमः – हृदियाय (हृदय पर स्पर्श करे)। ॐ मं बीजाय नमः गुह्ये (गुप्ताग का स्पर्श करें), यं शक्तये नमः पादयो (दोनो पाव का स्पर्श करें) वां कीलकाय नम: नाभौ (नाभि पर)। विनियोगाय नमः सर्वाङ्ग (शरीर के सब अंगो पर स्पर्श करे)।

करन्यास :- ॐॐ अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ न तर्जनीभ्यां नमः । ॐ म मध्यमाभ्यां नम:। ॐ शिं अनामिकाभ्यां नम:। ॐ वां कनिष्ठकाभ्यां नमः । ॐयं करतलकर पृष्ठाम्यां नमः ।

हृदयादि न्यास :- ॐ ॐ हृदयाय नमः । ॐ नं शिर से स्वाहा। ॐ मं शिखायै वष्ट् । ॐ शिं कवचाय हुम् (दोनों भुजाओं का स्पर्श करें)। ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट् (नेत्रो का स्पर्श)। ॐ यं अस्त्राय फट् (शिर के ऊपर चुटकी बजाते हुए दाहिना हाथ घुमाए)

इसके पश्चात् अपने दाई तरफ कुछ अक्षत (चावल) बिछाकर वहाँ पर सर्व कर्म के साक्षीभूत घी का दीपक प्रज्वलित करें और वहीं निकट धूप जला लें। इसके पश्चात् भगवान शिव का ध्यान (कर्पूर गौरं करूणाअवतारं संसार सारं भुजगेन्द्र हारं । सदा वसंतं हृदयार विन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि।।) करते हुऐ धीमे-धीमे ‘ॐ नमः शिवायः का जप प्रारम्भ कर दें। 1, 3, 5 व 11 जितनी माला करनी हों करें। उसके बाद हाथ में जल लेकर शिव देवातार्पणस्तु कहकर कटोरी या पृथ्वी पर जल छोड़ दें। इसके पश्चात् थोडा जल अलग से पृथ्वी पर छोड़कर ॐ शक्कराय नमः कहते हुए माथे से लगावें । तत्पश्चात शिव आरती करके आसन से उठ जावें ।

3.सरल साधन

शिव शिव शिव शिव शिव भोले बाबा शिव शिव शिव शिव शिव

कलिकाल अर्थात् कलयुग में आत्म-कल्याण का सरल साधन भगवान शिव की शरण में आना है। शिव नाम का सिमरन सभी पापों का नाश करने वाला और जीवन में सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है। कलयुग मैं जब जप-तप-यज्ञ अनुष्ठान इत्यादि के लिए समय और साधन का अभाव रहेगा तब भगवान का नाम सिमरन ही भव सागर से पार तारने वाला है कलयुग में कहा भी गया है –

“कलयुग केवल नाम अधारा सुमिरे-सुमिरे नर उतरेहि पारा”

अर्थात् जो फल लम्बे -लम्बे मन्त्रों के जप व अनुष्ठान से विभिन्न युगों में प्राप्त होता था वहीं फल कलयुग मे भगवान के नाम जप किरतन व लेखन से ही प्राप्त हो जाता है। इसी को आधार बनाकर महामृत्युंजय सेवा मिशन शिव नाम लेखन पुस्तिका उपलब्ध करा रहा है जिसमें साधक प्रतिदिन 108 बार शिव नाम लिखकर स्वयं का स्वयं के द्वारा कल्याण कर सकते है। नाम लेखन के साथ-साथ आप महामृत्युंजय मन्त्र या पंचाक्षर मंत्र का जाप भी करे तो अति उत्तम होगा। सोमवार या प्रदोष व्रत में से कोई एक व्रत या दोनों व्रत रखकर भी शिव का सानिध्य प्राप्त होता है रुद्राक्ष की माला धारण करने से शिव के साथ अन्य सभी देवता भी प्रसन्न होते है और अपनी कृपा करते है। शिवलिंग पूजन से सभी देवताओं के पूजन का लाभ मिलता है।