निःशुल्क शिव नाम लेखन पुस्तक

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।। ॐ नमः शिवाय।।

‘ॐ नमः शिवाय’ भगवान शिव का प्रधान मंत्र है। ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र की महिमा के विषय में श्री शिव महापुराण के वायवीय सहिता खण्ड के बारहवे अध्याय में आया है कि यह मंत्र भक्तों की सभी कामनाएं पूर्ण करता है। इसके अक्षर तो थोड़े ही हैं किन्तु वेदों का सार रूप होने के कारण इसमें अर्थ सिद्धि बहुत है। मुक्तिदाता सभी सिद्धिया इसी मंत्र में विद्यमान हैं। यह मंत्र धीरे-धीरे ‘ॐ नमः शिवाय’ ऐसा उच्चारण करते रहना चाहिए। इसमे शिव तो वाच्य है और वाचक मंत्र है। तभी तो सदा शिव इस मंत्र द्वारा ससार से मुक्त कराने वाले है। यह एक सूत्र में अनेको मणियों के समान है। बताया जाता है कि उस पुरूष को बहुत से शास्त्रों की आवश्यकता नहीं होती, जिसके हृदय में ‘ॐ नमः शिवाय’ महामंत्र व्याप्त हो चुका है। श्री शिव महापुराण के विद्येश्वर सहिता के ग्यारहवें अध्याय के अनुसार शिव पचाक्षर मंत्र नम: शिवाय के जाप में ब्राह्मण को प्रणव (ॐ) लगाना चाहिए तथा फल प्राप्ति के लिए गुरु से दीक्षा लेनी चाहिए। ब्राह्मण को नम: शब्द पहले बोलना चाहिए तथा अन्य वर्णो को अन्त में नम: का जप ही उत्तम बताया गया है। स्वयं भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु को उपदेश देते हुए कहा कि ॐकार मंत्र से लिंग (स्तम्भ) तथा पंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र के द्वारा बेर (मूर्ति) का पूजन करना चाहिए। यह मंत्र भाग्य विधाता और सब प्रकार के ज्ञान को देने वाला है, जो इसे मार्गशीर्ष में आर्दा नक्षत्र में (शिव चतुर्दशी) को जपता है वह उत्तम फल प्राप्त करता है मंत्र का जप उत्तर-पूर्व अर्थात् ईशान कोण की तरफ बैठकर करना चाहिए। शिव परिवार का चित्र एवं घी का दीपक जलाकर इस मंत्र का जप करें। इससे सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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हे मनुष्य तू स्वयं को पहचान, अपनी आत्म चेतना को जाग्रत कर और आत्मसात् कर ले कि मैं अमृत का पुत्र ही मृत्युलोक में अवतीर्ण हुआ हूँ। अमृत के द्वारा ही मेरी सत्ता है, मेरे चारों ओर सब मृत्यु के आधीन होने पर भी मैं स्वरूपतः अजर-अमर हूँ। मैं जो कुछ लेकर इस जगत में विहार कर रहा हूँ, उस सबको मृत्यु खा जाती है, परन्तु मुझे स्पर्श करने की क्षमता भी मृत्यु में नही है। मैं मृत्यु के राज्य में स्वयं को मृत्युजंय रूप में प्रतिष्ठित करके अमृत की विजय पताका फहराने के लिये उत्पन्न हुआ हूँ।

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पंचांग

भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठतम धरोहर महामृत्युंजय मंत्र

समय का कोई विश्वास नहीं है न जाने कब कौन-सा संकट आ जाए? अन्य संकटों से तो मनुष्य किसी तरह बच सकता है, परन्तु प्राणों के संकट आने पर अन्य सहायता मिलने पर भी ईश्वर कृपा की बड़ी आवश्यकता रहती है। इस दृष्टि से महामृत्युजय मंत्र ही अधिक तेजस्वी माना गया है। किसी भयंकर रोग से ग्रस्त हो जाने पर रोगी स्वयं महामुत्युजय मंत्र का मानसिक जप या रोगी के परिवार के लोग रोगी के कमरे में गोघृत का दीपक जलाकर जप करें अथवा ब्राह्मण प्रतिनिधि के द्वारा किसी शिव मन्दिर में घर पर ही जप करायें। आपरेशन इत्यादि से पहले महामृत्युंजय मंत्र का जप करना या कराना आरम्भ कर लेना चाहिए। प्रभु कृपा से तो आपरेशन आदि का संकट नहीं आयेगा अथवा आयेगा भी तो वह सुख-शान्ति कारक होगा।

किसी घोर संकट की स्थिति में विद्वान पंडितों द्वारा सवा लाख जप संख्या बताई जाती है। ऐसे में एक तो संकट और ऊपर से 20 – 25 हजार रूपये का खर्च कष्टकारक होता है। हमारा कहना है कि यदि सामान्यत: घर में महामृत्युंजय मंत्र की एक माला प्रतिदिन होती रहे और छः माह में एक हवन हो जाए तो ऐसे आकस्मिक संकट से बचा जा सकता है। भगवान महामृत्युंजय की कृपा जिस भी घर में रहती है बरसती है वहाँ अमृत बरसता है। इसमें जरा भी संशय नहीं है।